*माँ ब्रह्मचारिणी तपस्या की प्रतिमूर्ति*

नवरात्र के दूसरे दिन जिस देवी की आराधना की जाती है , वे हैं माँ ब्रह्मचारिणी । उनका नाम ही उनका स्वरूप तथा गुणों का परिचय देता है । ब्रह्म का अर्थ है परमात्मा व चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली । अर्थात् जो ब्रह्म अथवा परम सत्य की साधना में निरन्तर रत रहती है, वही ब्रह्मचारिणी कहलाती है । माता का यह स्वरूप तप , त्याग , साधना , संयम तथा ज्ञान का द्योतक है । नवरात्रि के इस दिन साधक माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना कर अपने जीवन में तप और धैर्य को स्थापित करने का संकल्प लेते हैं , जब देवी पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने का संकल्प लिया , तब उन्होंने कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया । उन्होंने वर्षों तक घोर तपस्या कर मात्र फल – फूल , पान-पत्ता ग्रहण कर जीवन व्यतीत किया । अन्ततः इनका भी त्याग कर मात्र वायु पीकर जीवित रहीं । उनकी तपस्या इतनी कठोर थी की त्रिलोक में विस्मय फैल गया । इस कठिन तपस्या के कारण ही उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा । अन्ततः उनकी अडिग निष्ठा और अनुपम तप के बल पर उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया ।
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यन्त सौम्य व तेजस्वी है । वे दाहिने हाथ में जपमाला और बायें हाथ में कमण्डल धारण करती हैं । उनके तेजस्वी मुखमण्डल पर अटूट श्रद्धा और तपस्या का भाव स्पष्ट झलकता है । यह स्वरूप साधना और संयम के महत्व को दर्शाता है । माता का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि – कठिन से कठिन लक्ष्य भी संयम , साधना और धैर्य से प्राप्त किया जा सकता है । नव रात्रि के दूसरे दिन प्रभात बेला में स्नान-ध्यान तथा स्वयं शुद्ध होकर स्वच्छ परिधान धारण कर पूजा स्थल को गङ्गाजल से पवित्र किया जाता है । उपरान्त माता ब्रह्मचारिणी का स्मरण कर उन्हें धूप , दीप , फूल , अक्षत और नैवेद्य अर्पित किया जाता है । ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः मंत्र का जाप किया जाता है । माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक के भीतर तप, संयम, ज्ञान और वैराग्य की वृद्धि होती है । उसे जीवन के संघर्षों में धैर्य बनाये रखने की शक्ति प्राप्त होती है ।
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि – आत्मसिद्धि और परम सत्य की प्राप्ति के लिये कठोर साधना अनिवार्य है । आज के भौतिकवादी युग में जहाँ लोग क्षणिक सुखों के पीछे भागते हैं वहाँ यह स्वरूप हमें आत्मनियंत्रण और संयम का महत्व बताता है। तप साधना के माध्यम से ही मनुष्य अपने अन्दर की नकारात्मक शक्तियों अर्थात् षट्विकारों काम , क्रोध , लोभ , मोह , मद और मत्सर को पराजित कर सकता है । माता ब्रह्म चारिणी की पूजा हमें यह संदेश देती है कि – सच्चे लक्ष्य की प्राप्ति हेतु धैर्य , निष्ठा और सतत प्रयास नितान्त आवश्यक है । उनका तप और त्याग हमें यह प्रेरणा देता है कि – जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आयें , हमें अपने मार्ग पर अडिग रहना चाहिये । नवरात्रि का यह दिन आत्मशुद्धि और आत्मबल वृद्धि का पर्व है । माता ब्रह्मचारिणी की आराधना करने वाला भक्त जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सुख , शांति और समृद्वि का अनुभव करता है । इस प्रकार माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप प्रत्येक साधक के लिये प्रेरणा और आदर्श का स्रोत है , जो हमें सत्य , तप और संयम पथ की ओर अग्रसर करता है ।
*डॉ. गौतमसिंह पटेल* सालर, सारंगढ़ छग.


