BlogCHHATTISGARHnewsSARANGARH-BILAIGARH

*मातृ मृत्यु पर विशेष*

सारंगढ़ बिलाईगढ़ __ मातृ मृत्यु एक बहुत पुरानी समस्या है जिसमे माताओं की मृत्यु गर्भावस्था में या प्रसव के दौरान या फिर प्रसव होने के 42 दिन के अंदर होता है इसे ही मातृ मृत्यु की श्रेणी में रखते है प्रदेश जब बना तब यह डर 300 के ऊपर था कार्य हुआ प्रगति हुआ कार्यक्रम में इसके रोकथाम में बहुत से उपाय किए गए कई कार्यक्रम भी चला  तब जाकर कम हुए लेकिन आज भी यह मृत्यु दर  प्रदेश में 140 के ऊपर है यदि इसे जिले संदर्भ में देखे तो गत फाइनेंशियल ईयर में 150 प्रति एक लाख प्रसव रहा है इस हिसाब से जिले में मृत्यु दर प्रदेश की औसत दर से ज्यादा है प्रदेश स्तर से एवं जिला स्तर से भी कलेक्टर सर स्वयं इसकी लगातार मॉनिटरिंग कर रहे है इस प्रकार की मृत्यु दर होना सही नहीं है हमे तत्काल और अच्छी कार्ययोजना बना कर मातृ मृत्यु दर को कम करने का उपाय करना ही होगा                 *मातृ मृत्यु होने के कारण क्या है*  इसके प्रमुख कारण में उच्चरक्त चाप से जुड़ी हुई समस्या ,प्रसव उपरांत अत्यधिक रक्त स्राव के कारण ,रक्त अल्पता के कारण और संक्रमण ये 4 प्रमुख कारण है इसके अलावा कोई पुरानी बीमारी ,sickling किडनी की बीमारी हार्ट डिजीज अबॉर्शन  श्वसन तंत्र  की बीमारी आदि                    *कब सबसे ज्यादा मृत्यु हो रही है* प्रसव हो जाने के बाद 42 दिन भीतर की मौत की संख्या सर्वाधिक है लगभग 67 % से ज्यादा की मौतें प्रसव के बाद हो रही है इस कारण हमें सर्वाधित सजग और सतर्क  रहने की जरूरत  प्रसव के बाद रहनी होगी                  प्रसव के प्रकरण को दो भागों में बांट सकते है जैसे।    1 सामान्य प्रसव  _ इस प्रकार के प्रसव प्रकरण में आम तौर पर SHC ,PHC या CHC में प्रसव हो  जाया करती है  ऐसे प्रसव की संख्या लगभग 80 % होती है कुल प्रसव के।    2 __ लेकिन महिला को गर्भावस्था में कोई जटिलता हो तो है तब यह सामान्य प्रसव  असामान्य हो जाती है इस कारण इस ग्रुप को high risk में रखते है  और आमतौर पर इस प्रकार के प्रसव को ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती है  इसकी संख्या 15 से 20 % होती है                      *सामान्य या असामान्य की जानकारी कब मिलती है* जैसे ही हम गर्भवती की पंजीयन करते है पंजीयन 100% प्रथम तिमाही में ही कर लिया जाना होता है  पंजीयन करते ही हमारे RHO इसे कैटिगरीज करते है सामान्य या असामान्य। सामान्य प्रसव कैटिगरी में भी महिलाओं की समुचित जांच की जाती है  पंजीयन पश्चात पूरे गर्भकाल में कम से कम 4 बार जांच करना होता है *पहला* जांच प्रथम तिमाही में *दूसरा जांच* द्वितीय तिमाही में तृतीय जांच  एवं चतुर्थ जांच अंतिम तिमाही में करना होता है अंतिम तिमाही के अंतिम पखवाड़ा की जांच अति महत्वपूर्ण होता है इसी अवस्था में जांच जरूरी होता है कार्यक्रम में गैप यही पर ज्यादा हो रहा है चतुर्थ जांच नहीं हो पा के कारण अनेकों प्रॉब्लम आ रही है                     *असामान्य या  high  risk प्रसव* ऐसे प्रसन्न सामान्यतः नॉर्मल प्रसव कम होते है और ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती है ये है इस कारण से FRU फर्स्ट रेफरल यूनिट की स्थापना की गई जब भी ऐसी परिस्थिति आती है CHC को ऑपरेशन के लिए प्लान करते सारंगढ़ एक FRU है लेकिन गायनेकोलॉजिस्ट ,एनेस्थेटिक्स की व्यवस्था नहीं के कारण परफॉर्मेंस  इनएक्टिव की स्थिति में है ये high रिस्क  ANC निम्न हो सकते है 1 माताओं की उम्र 19 वर्ष से कम होना ,2 ___35 वर्ष के पश्चात पहली बार ANC होना।                          3__ ऊंचाई या कद छोटा होना  ,ज्यादा बच्चे पहले ही हो जाना  ,                 4 ___मोटापा  होना ,             5 ___ अबॉर्शन होने की जानकारी हो।                   6___ पहला बच्चा ऑपरेशन से हुआ हो।        7 ___ जुड़वा बच्चे का होना।                           8 __ बच्चे का  आड़ा तिरछा होना।                9___ प्रसव के पहले ही योनि मार्ग से खून निकलना।                        10 _ गर्भावस्था में कोई गंभीर बीमारी का होना जैसे sickling ,HIV पॉजिटिव ,RH नेगेटिव  , टीबी ,मिर्गी ,blood प्रसार का होना ,डायबिटिक का होना ,खून कम होना  ,पीलिया आदि बीमारी के होने से खतरा बढ़ जाता                     *ये उच्च जोखिम के माताओं की पहचान  कैसे की जाती है* प्रत्येक गर्भवती माताओं को प्रथम तिमाही में पंजीयन करने होते है    high रिस्क के ANC का बार बार जांच करना होता है और प्रसव के ड्यू डेट तक कम से कम 4 बार जांच हो जानी चाहिए जांच उपरांत ही यह तय हो जाती है जिनका सामान्य प्रसव नहीं हो पाता उन्हें प्रेरित करके ,काउंसलिंग करके  कोई अच्छे जगह जहां ऑपरेशन की सुविधा हो  वहा समय रहते  ही रेफर करना होता है  सामान्य और असामान्य ANC की पहचान के बाद उसका निदान पर ध्यान देना होता है क्योंकि असामान्य प्रसव वाले हितग्राहियों के परिजन की काउंसलिंग करना ज्यादा जरूरी होता है जब वे समझ जाते है कि इनका प्रसव नॉर्मल होने की संभावना नहीं रहती फिर दूसरे विकल्प की बात की जाती है कहा जायेंगे ,क्या क्या ले जाएंगे ,साथ में कौन जाएगा ,कौन से साधन से जाएंगे क्योंकि *मृत्यु होने के असली कारण होते है निर्णय लेने में विलंब* यदि इस अवस्था में तत्काल और सही निर्णय नहीं लेंगे तो फिर नुकसान होने की संभावनाएं बढ़ जाती है *दूसरा कारण होता है ट्रांसपोर्ट व्यवस्था करने में विलंब* गाड़ी व्यवस्था करने में जब विलंब होता है तब भी नुकसान होने की संभावनाएं बढ़ती जाती है उसी तरह से यदि अस्पताल पहुंच कर *इलाज में देरी* होती है तब भी नुकसान ज्यादा होने की संभावनाएं बढ़ जाती है                                  *परिजन क्या* करे जब भी गर्भवती पंजीयन होती है बार बार जांच होती है आयरन कैल्शियम की गोली की नियमित सेवन करनी चाहिए पूर्व प्रसव या बीमारी की जानकारी होती है उसी अवस्था में प्रायः बहुत से प्रकरण में तय हो जाती है कि इनका प्रसव सामान्यतः छोटे संस्था में नहीं हो सकता उस अवस्था में परिजन की काउंसलिंग की जाती है उनके साथ बैठ कर प्लानिंग की जाती है मोटिवेट की जाती है सारी व्यवस्थाएं पूर्व से ही कर ली जाती है और परिजन  को स्वयं ही आगे आना चाहिए और प्रसव पीड़ा आने के पूर्व ही ऐसे प्रसव के प्रकरण को हमे अस्पताल में भर्ती कर देनी चाहिए आम जन  यही पर निर्णय लेने में देरी करता है या सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता  परिणाम नुकसान होता है  ऐसे प्रकरण को ड्यू डेट के पहले ही बड़े अस्पताल में भर्ती कर दिए जाने से नूकसान होने की दर कम हो जाती है  *समाज की भूमिका* समाज को हमे यही प्रयास करनी चाहिए परिजन को यहां आगे आकर सोचना होगा तब कही जा कर हम मातृ मृत्यु की दर को कम कर सकते है   प्रदेश स्तर से और जिला स्तर से भी इसकी नियमित समीक्षा हो रही है जिले में कलेक्टर सर के द्वारा निर्देश है कि अपने अपने ब्लॉक के सभी प्रसव प्रकरण को ड्यू डेट के अनुसार प्रति माह  BMO अपने टेबल में रखे नियमित मॉनिटरिंग करे विशेष कर अगर प्रकरण high रिस्क में है तो काउंसलिंग ,जांच करके उने अच्छे संस्था में जाने के लिए तत्काल निर्णय ले या फिर पहले से ही अच्छे अस्पताल में भर्ती कर दिए जाए तब जाकर मातृ मृत्यु की संख्या में गिरावट आएगी  हर स्तर पर सक्रियता की जरूरत है जैसे परिवार सक्रिय रहे क्षेत्रीय कार्यकर्ता  ,मितानिन सक्रिय रहे ,PHC इंचार्ज भी सक्रिय हो ,ब्लॉक स्तर पर भी जिम्मेदार अधिकारी तत्काल और उचित निर्णय लेने से ही हमें सफलता मिलेगी इसमें लगातार स्वास्थ्य शिक्षा देते रहने की जरूरत है  हितग्राहि के परिजन को पहले से ही सतर्क करेंगे उचित मार्गदर्शन देंगे तब जाकर नुकसान कम कर पाएंगे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest