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*मित्रता हो तो कृष्ण सुदामा जैसे*


                                    सारंगढ़। सालर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के 7 दिन कथा व्यास दिनेश शर्मा ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया । सुदामा जी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। पूजा पाठ  कर अपने परिवार का पालन पोषण करते । गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि – आप के मित्र तो द्वारकाधीश हैं उन से जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं की सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते । उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंहासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पट रानियां सुदामा से आशीर्वाद लेती हैं । सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं । यदु महाराज ने 9 योगियों से प्रश्न किये जिस के जवाब देते हुए धर्म पूजन आदि के बारे में बताया फिर दत्तात्रेय महाराज की कथा बताएं । शिक्षा गुरु अनेक हो सकते है परंतु दीक्षा गुरु एक होते हैं फिर अंत में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ कथा का विराम हो गया।

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