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बिलाईगढ़ का विकास: लापरवाही नहीं, एक साहसी प्रशासनिक पहल की कहानी





बिलाईगढ़, छत्तीसगढ़: छोटे शहरों के विकास की गाथा में अक्सर सरकारी लालफीताशाही और प्रशासनिक लापरवाही की खबरें ही प्रमुखता से सामने आती हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के बिलाईगढ़ नगर में चल रही विकास परियोजनाओं की जमीनी हकीकत, अख़बारों में छपी सतही खबरों से कहीं अधिक गहरी और प्रेरक है। यह कहानी है एक ऐसे मुख्य नगर पालिका अधिकारी के दूरदर्शी नेतृत्व की, जिन्होंने पिछली व्यवस्थाओं की गलतियों को सुधारते हुए, कानूनी और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करते हुए, शहर के भविष्य को एक नया आयाम दिया है।
गलत प्रकाशनों का विस्तृत खंडन
हाल ही में कुछ अख़बारों ने बिलाईगढ़ में गौरवपथ निर्माण के काम को अधूरा और रुका हुआ दिखाकर इसे ‘प्रशासनिक लापरवाही’ का परिणाम बताया। उन्होंने दावा किया कि काम महीनों से बंद है और शहर की जनता धूल-मिट्टी से परेशान है। लेकिन नोटशीट्स और आधिकारिक पत्राचार के दस्तावेज़ एक अलग ही तस्वीर पेश करते हैं।
वास्तविकता यह है कि पिछली व्यवस्था के दौरान बिना अतिक्रमण हटाए ही गौरवपथ का निर्माण शुरू कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, व्यापारियों और दुकानदारों ने माननीय उच्च न्यायालय में आठ रिट याचिकाएं दायर कर दीं, जिससे न्यायालय ने सीमांकन के बाद ही आगे कार्यवाही का आदेश दिया। यही न्यायिक बाधा काम रुकने का मुख्य कारण थी, न कि कोई लापरवाही।
मुख्य नगर पालिका अधिकारी के निर्णायक कदम
प्रशासनिक बदलाव के बाद, वर्तमान मुख्य नगर पालिका अधिकारी  सुशील कुमार चौधरी ने इस उलझी हुई स्थिति को सुलझाने का बीड़ा उठाया। उनके द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णय और कार्य निम्नलिखित हैं:
समग्र समाधान का दृष्टिकोण: उन्होंने केवल गौरवपथ की समस्या पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, बल्कि इसे शहर के समग्र विकास की बड़ी तस्वीर से जोड़ा। उनका मानना है कि गौरवपथ का उद्देश्य केवल सड़क बनाना नहीं, बल्कि मुख्य मार्ग पर यातायात, पार्किंग और ड्रेनेज जैसी बुनियादी समस्याओं का स्थायी समाधान करना है।
दस्तावेजों का संकलन: न्यायिक अड़चनों को दूर करने के लिए, उन्होंने लोक निर्माण विभाग से 1970 के दशक में किए गए भूमि अधिग्रहण और सड़क के नक्शे से संबंधित सभी दस्तावेज़ मांगे, ताकि उच्च न्यायालय में एक मजबूत और तथ्यात्मक जवाब प्रस्तुत किया जा सके।
काम को दोबारा शुरू करना: जहां कानूनी बाधाओं के कारण काम रुका हुआ था, वहीं उन्होंने बांसउरकुली नाले की ओर से गौरवपथ का निर्माण दोबारा शुरू करवाया। इस रणनीतिक कदम से न केवल परियोजना में फिर से जान आई, बल्कि यह भी साबित हुआ कि प्रशासन विकास के प्रति प्रतिबद्ध है।
जल आवर्धन योजना का समन्वय: उन्होंने गौरवपथ के साथ-साथ 132 करोड़ रुपये की लागत से चल रही जल आवर्धन योजना को भी समन्वित किया। उनका मानना है कि पाइपलाइन बिछाने के लिए उचित स्थल और एक प्रभावी ड्रेनेज व्यवस्था, दोनों ही शहर के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन्हें एक साथ लागू करना आवश्यक है।
दूरदर्शिता और भविष्य की तैयारी
श्री चौधरी का दृष्टिकोण केवल वर्तमान समस्याओं को हल करने तक सीमित नहीं है। वह बिलाईगढ़ को एक ऐसे शहर के रूप में देखते हैं, जो भविष्य की जरूरतों के लिए भी तैयार हो। उनका काम सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का सम्मान करता है, जिसमें पैदल चलने वालों और दिव्यांगों के लिए फुटपाथ बनाने पर जोर दिया गया है। यह दिखाता है कि बिलाईगढ़ का विकास केवल गाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि सभी नागरिकों के लिए एक सुरक्षित और सुगम वातावरण बनाने के लिए है।
यह स्पष्ट है कि बिलाईगढ़ के विकास की कहानी, जैसा कि अख़बारों में छपी है, केवल एक सतही झलक है। इसकी गहराई में एक कुशल नेतृत्व, प्रशासनिक दूरदर्शिता और जनहित के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता की मिसाल है, जो इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रेरणादायक उदाहरण बनाती है।

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