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जब जेई बने बिल्डर्स के रहनुमा: करोल बाग जोन में एमसीडी की बिल्डिंग  डिपार्टमेंट पर उठे सवाल






दिल्ली के करोल बाग जोन में नगर निगम (एमसीडी) के बिल्डिंग विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। ताज़ा आरटीआई जवाब से खुलासा हुआ है कि विभाग ने अवैध निर्माणों पर कार्रवाई के आदेश तो दिए, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
आरटीआई के अनुसार, बिल्डिंग विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर तरुण कृष्ण आर्य ने खुद स्वीकार किया है कि डीएमसी एक्ट के तहत कई अवैध निर्माणों पर कार्रवाई के निर्देश जारी किए गए, लेकिन जूनियर इंजीनियर देवेंद्र कुमार ने अब तक एटीआर (Action Taken Report) तक नहीं भेजी।
यह जानकारी इस बात का संकेत है कि विभाग के भीतर एक जूनियर इंजीनियर की मनमानी किस हद तक बढ़ चुकी है। न तो अधीक्षक अभियंता (Superintending Engineer) ने इस लापरवाही पर कोई सवाल उठाया, न ही अब तक किसी प्रकार की विभागीय जांच शुरू की गई। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब यह पता चलता है कि सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (CVC) ने पहले ही एमसीडी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर को करोल बाग जोन के इंजीनियरों की जांच के स्पष्ट निर्देश दिए हैं।

अवैध निर्माणों का खुला खेल


पहाड़गंज और आस-पास के इलाकों में चल रहे अवैध निर्माण किसी से छिपे नहीं हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि बिल्डिंग विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह धंधा खुलेआम चल रहा है। एक निवासी के अनुसार, “हर निर्माण के एवज में विभाग के कर्मचारियों को 5 से 10 लाख रुपये तक की रकम देनी पड़ती है। इसके बाद किसी भी इमारत को कोई नहीं रोकता।”

ऐसे आरोपों से साफ है कि यह केवल एक कर्मचारी की मनमानी नहीं, बल्कि एक
सुनियोजित नेटवर्क है — जिसमें इंजीनियरों, ठेकेदारों और कुछ नेताओं की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है।

प्रशासनिक चुप्पी


सूत्रों के अनुसार, एक महिला शिकायतकर्ता ने कई बार डिप्टी कमिश्नर से मिलकर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा डिप्टी कमिश्नर ने उनसे मिलना तक बंद कर दिया।
आरटीआई दस्तावेजों में तरुण कृष्ण आर्य का बयान इस बात की पुष्टि करता है कि वरिष्ठ अधिकारी भी देवेंद्र कुमार जैसे कर्मचारियों के आगे बेबस हैं।
यह बेबसी किसी व्यक्तिगत कमजोरी की नहीं, बल्कि भ्रष्ट तंत्र की ओर इशारा करती है, जहां नेताओं और बिल्डरों का गठजोड़ सरकारी मशीनरी पर हावी दिखता है।

अब निगाहें कमिश्नर पर
अब सवाल यह है कि क्या एमसीडी कमिश्नर अश्विनी कुमार जिनकी पहचान एक सख्त और ईमानदार अधिकारी के रूप में है, इस पूरे प्रकरण पर निर्णायक कार्रवाई करेंगे?
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक उच्च स्तर पर कठोर कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अवैध निर्माणों का यह खेल बंद नहीं होगा।
सीवीसी के निर्देशों, आरटीआई दस्तावेजों और जनता की शिकायतों के बावजूद अब तक की चुप्पी यह दिखाती है कि करोल बाग जोन का बिल्डिंग विभाग पूरी तरह से “सिस्टम” के कब्जे में है — ऐसा सिस्टम जो केवल पैसे की भाषा समझता है।
अगर इस बार भी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मान लेना होगा कि दिल्ली में अवैध निर्माण अब दिल्ली नगर निगम के संरक्षण में ही फल-फूल रहे हैं।

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