सहकारिता में ‘सेवा’ या ‘सेटिंग’? – वेतन शून्य, उत्साह पूरा!

सारंगढ़-बिलाईगढ़। मार्केटिंग सोसायटी के कर्मचारी जीवन साहू इन दिनों पूरे दफ्तर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। वजह भी कम दिलचस्प नहीं—न मार्केटिंग से वेतन मिलता, न अटैच सहकारिता विभाग से… लेकिन ड्यूटी? मानो तनख्वाह टाटा-एस्कॉर्ट दे रही हो। कहते हैं, जहाँ वेतन नहीं, वहाँ मन भी नहीं। लेकिन यहाँ मन के साथ-साथ हाजिरी भी फुल! समझदार लोग समझ रहे हैं कि आखिर विभाग के अधिकारी वर्षों से इन्हें अपने पास क्यों बैठाए रखते हैं। किसी को ‘काम’ दिखता है, किसी को ‘कर्मठता’, और कुछ को तो ‘कनेक्शन’ नजर आता है। स्थानीय कर्मचारियों में चुटकुलों का दौर चल पड़ा है-ये नौकरी नहीं, आस्था का केंद्र है, जहाँ वेतन नहीं—वृत्ति चलती है।अब सवाल बड़ा सीधा है-जब वेतन नहीं मिल रहा, फिर भी कर्मचारी इतने ठनाट क्यों?क्या वाकई ‘समर्पण’ ऐसा होता है या फिर विभाग के कमरे में कोई ऐसा चुंबक है, जो सालों से इन्हें खींचे हुए है? जो भी हो, मामला दिलचस्प भी है और सवालों से भरा भी।


