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सारंगढ़ में थाने से ज्यादा ठेके! हर वार्ड में महुआ से अंग्रेजी तक अवैध शराब फुल ऑन



सारंगढ़–बिलाईगढ़। जिले में यदि किसी चीज़ की सप्लाई चौबीसों घंटे निर्बाध चल रही है, तो वह है अवैध शराब। महुआ की देसी खुशबू से लेकर चमचमाती अंग्रेजी बोतलों तक, हर वार्ड में ऐसा इंतजाम है मानो सरकारी नहीं, बल्कि घर-घर मदिरा योजना लागू हो चुकी हो।
सुबह होते ही कुछ वार्डों में चाय से पहले महुआ का दौर शुरू हो जाता है और रात ढलते-ढलते अंग्रेजी की बोतलें ऐसे निकलती हैं जैसे सब्ज़ी मंडी से टमाटर। न ग्राहक की कमी, न डर का माहौल-बस पूछिए और पाइए। सूत्रों की मानें तो वार्ड बदलो, ब्रांड बदलो, पर अवैध होना नहीं बदलता। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस अवैध कारोबार का भूगोल पुलिस से ज्यादा सटीक आम लोगों को पता है। कौन सा वार्ड, कौन सी गली, किस घर के पीछे, किस दुकान के पर्दे के अंदर-सब कुछ ओपन सीक्रेट है। बावजूद इसके, कार्रवाई का आलम ऐसा है जैसे विभाग गूगल मैप खोलकर रास्ता ढूंढ रहा हो। स्थानीय लोगों का कहना है कि महुआ शराब खुलेआम बिक रही है, वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी शराब भी बिना लाइसेंस,बिना डर के परोसी जा रही है। कई जगह तो हालात यह हैं कि शाम होते ही अस्थायी मिनी बार सज जाते हैं, जहां न उम्र की जांच है और न ही समय की सीमा। व्यंग्य यहीं खत्म नहीं होता। जब कभी कार्रवाई होती भी है, तो वह इतनी हल्की होती है कि बोतलें तो पकड़ में आ जाती हैं, मगर सप्लायर अगली सुबह फिर मुस्कुराते हुए मौजूद रहते हैं। लोग कहने लगे हैं – शराब पकड़ी जाती है, कारोबार नहीं। नतीजा यह है कि मोहल्लों का माहौल बिगड़ रहा है, छोटे विवाद बड़े झगड़ों में बदल रहे हैं और घरेलू हिंसा से लेकर सड़क हादसों तक, सबकी जड़ में यही अवैध नशा है। लेकिन अफसोस, जिम्मेदारों के लिए यह सिर्फ रूटीन की खबर बनकर रह गई है। अब सवाल यह है कि सारंगढ़ में अवैध शराब बंद करने की जिम्मेदारी किसकी है। आबकारी विभाग की, पुलिस की, या फिर उस सिस्टम की जो सब देखकर भी चुप है। जनता पूछ रही है – कानून सूखा है या सिर्फ शराब बह रही है।

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