त्रिमूर्ति महामाया मंदिर: छत्तीसगढ़ की आस्था और शक्ति का अनोखा संगम

जब नवरात्रि की घटस्थापना होती है, तो छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक नगर धमधा आस्था और शक्ति की भक्ति में डूब जाता है। यहां स्थित त्रिमूर्ति महामाया मंदिर न केवल प्रदेश बल्कि पूरे भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की साकार प्रतिमाएं एक ही गर्भगृह में विराजित हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर की स्थापना 1589 ई. में गोंड वंश के राजा दशवंत सिंह ने की थी। मान्यता है कि राजा की माता को देवी महाकाली ने स्वप्न में दर्शन देकर यह बताया कि वे धरती में गड़ी हुई हैं। इसके बाद सिंहद्वार, जोगीगुफा और एक इमली के पेड़ के नीचे से तीनों देवियों की प्रतिमाएं प्राप्त हुईं और एक साथ प्रतिष्ठित की गईं।
जहां देश के अन्य हिस्सों—जैसे वैष्णो देवी (जम्मू) या दक्षिण भारत में त्रिदेवी की पूजा पिंड रूप या प्रतीक रूप में होती है, वहीं धमधा में ये तीनों देवियां जीवंत मूर्ति स्वरूप में एक ही स्थान पर विराजमान हैं। यह विशेषता इस मंदिर को भारत की आध्यात्मिक विरासत में अद्वितीय स्थान देती है।
नवरात्रि आते ही मंदिर परिसर में सैकड़ों ज्योति कलशों की रोशनी से वातावरण अलौकिक हो उठता है। भक्तजन अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करते हैं। वर्ष 1980 में गठित त्रिमूर्ति महामाया न्यास समिति के संचालन में यह परंपरा लगातार फल-फूल रही है।
मंदिर के पीछे स्थित है गोंड समाज के ईष्टदेव बूढ़ादेव का मंदिर, और उसके समीप ही है गोंड वंश का ऐतिहासिक किला, जो आज भी अपने भग्न रूप में वीरता और संस्कृति की कहानी कहता है। यह स्थान केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सभ्यता, इतिहास और लोक आस्था का जीवंत प्रतीक है।
त्रिमूर्ति महामाया मंदिर केवल ईंट-पत्थरों से बना एक भवन नहीं, यह एक जीवंत आस्था है—जहां श्रद्धा, शक्ति और इतिहास मिलकर हर भक्त को एक दिव्य अनुभूति का अनुभव कराते हैं।


