
सारंगढ़। नगर के सीमा क्षेत्र से लगा विशालपुर गांव एक ऐतिहासिक पहचान रखने के बावजूद आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है । यहां लगभग 250 से 300 लोग निवासरत है जहां बीते 100 वर्षों से आज तक एक भी मुक्तिधाम नहीं बन पाया है । यह गांव दानसरा बीडीसी क्षेत्र में आता है। ग्रामीणों को अंतिम संस्कार के समय खास कर बरसात के दिनों में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों के अनुसार, बारिश के मौसम में शव को जलाने हेतु उपयुक्त स्थल नहीं होने से ताला तालाब के पार खुले में अंतिम संस्कार करना पड़ता है । न तो वहां तक जाने के लिए समुचित रास्ता है और न ही शवदाह के लिए पक्की या सुरक्षित जगह । यह स्थिति न केवल भावनात्मक रूप से पीड़ादायक नहीं है बल्कि स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से भी गंभीर चिंता का विषय है।
विदित हो कि – गांव के इतिहास की बात करें तो विशालपुर को राजा जवाहिर सिंह के समय बसाया गया था। बुजुर्गों ने बताया कि – राजा के आदेश पर बरभाठा गांव से हेतराम टंडन (राजा के खमारी) के परिवार से छह भाइयों को लाकर इस गांव की नींव रखी गई थी। स्वयं राजा ने गांव का नाम विशालपुर रखा था। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि – राजा के जमाने से लेकर अब तक कई सरपंच बदले, पंचायतें आईं , गईं, यहां तक की गांव शहरी क्षेत्र से भी जुड़ गया। बावजूद इसके, दो बार विभिन्न दलों के नेता बीजेपी और कांग्रेस अध्यक्ष और दो बार पार्षद बनने के बाद भी मुक्तिधाम निर्माण आज तक अधूरा ही रहा।
ग्रामीणों का कहना है कि – उन्होंने कई बार प्रशासन को इसकी जानकारी दी, ज्ञापन सौंपा और व्यक्तिगत रूप से भी समस्या से अवगत करायें परंतु किसी ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया । मजबूरी में हर अंतिम यात्रा के लिए गांव वाले कंधों पर शव उठाकर तालाब के पार जाते हैं और खुले में ही दाह संस्कार करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि – क्या जपं प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि इस गंभीर समस्या पर ध्यान देंगे ? या फिर विशालपुर के लोग यूं ही असुविधाओं के बीच अपने परिजनों की अंतिम विदाई करते रहेंगे ?