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पलायन पर ‘प्रहार’: छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे ने पेश किया ‘आत्मनिर्भर भारत’ का बड़ा मॉडल



सारंगढ़ बिलाईगढ़।  जब देश के बड़े महानगर रोजगार और पलायन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले सारंगढ़-बिलाईगढ़ की एक नगर पंचायत ने समस्या के समाधान का एक अनुकरणीय ‘ब्लूप्रिंट’ पेश किया है। बिलाईगढ़ नगर पंचायत के पार्षदों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक ऐतिहासिक संकल्प लिया है— “हमारे शहर का पैसा, हमारे लोगों के हाथ।”

यहाँ के पार्षदों ने अपनी विकास निधि का उपयोग केवल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में नहीं, बल्कि ‘मानव संसाधन’ को खड़ा करने में करने का निर्णय लिया है। उद्देश्य साफ़ है—शहर से होने वाले पलायन (Migration) पर सीधा प्रहार।

क्या है ‘बिलाईगढ़ मॉडल’?
परंपरागत रूप से सरकारी टेंडर बड़े ठेकेदारों को जाते थे, जिससे स्थानीय मजदूरों को नाममात्र का लाभ मिलता था। लेकिन बिलाईगढ़ के पार्षदों ने धारा 123 के तहत मिले अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए ‘विशेष आग्रह’ किया है कि उनके वार्ड के सभी कार्य—चाहे वह निर्माण हो, विद्युतीकरण हो या सामग्री क्रय—केवल नगर के पंजीकृत स्व-सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से ही कराए जाएंगे।

सामूहिक प्रयास, व्यापक बदलाव:
इस मुहीम में शहर के हर कोने से जनप्रतिनिधि शामिल हैं:

पर्यावरण से रोजगार: पार्षद संतोष देवांगन (वार्ड 11) ने 2 हेक्टेयर में ‘मानव निर्मित वन’ (अमराइया) और पार्षद लवी लव सोनी (वार्ड 14) ने लैंडस्केपिंग प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, जिसमें स्थानीय महिलाएं पौधे तैयार करने से लेकर रखरखाव तक का काम संभालेंगी।

सुरक्षा और सम्मान: पार्षद कन्हैया खूंटे (वार्ड 10) ने सफाई मित्रों को ‘सुरक्षा किट’ (हेलमेट, बूट्स) देकर न केवल उन्हें सुरक्षा दी है, बल्कि इस खरीद को भी स्थानीय वेंडर्स से जोड़कर व्यापार बढ़ाया है।

बुनियादी ढांचा और श्रम: पार्षद धनीराम राकेश (वार्ड 01), धनश्याम राकेश (वार्ड 02) और मुकेश जायसवाल (वार्ड 03) ने जलभराव और नाली निर्माण के जटिल कार्य स्थानीय समूहों को सौंपने का प्रस्ताव दिया है, जिससे राजमिस्त्रियों और मजदूरों को अपने घर के पास ही काम मिलेगा।

सौंदर्यीकरण और शिल्प: पार्षद अनूप जायसवाल (वार्ड 04), उमाशंकर देवांगन (वार्ड 05) और भगवती देवांगन (वार्ड 06) ने अटल परिसर और सामुदायिक भवनों के विकास कार्यों में स्थानीय शिल्पकारों और समूहों की भागीदारी सुनिश्चित की है।


बिलाईगढ़ की यह पहल साबित करती है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो स्थानीय निकाय (Local Bodies) केवल प्रशासन की इकाई नहीं, बल्कि आर्थिक बदलाव के इंजन बन सकते हैं। यह मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने योग्य है, जहाँ विकास का पहिया स्थानीय रोजगार की धुरी पर घूमता है।

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