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*कात्यायनी अधर्म, अत्याचार, दानवघातिनी*



नवरात्र के छठे दिन माता कात्यायनी की आराधना की जाती है । यह शक्ति का वह स्वरूप हैं , जो अधर्म और अत्याचार का नाश करती हैं । इन्हें असुरों का संहार करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है । कात्यायनी नाम का अभिप्राय है कात्य ऋषि की कन्या । ये तेजस्विनी और विनाशकारी रूप के लिये प्रसिद्ध हैं , जिनकी पूजा अर्चना से दुःख दर्द , भय , संकट , रोग , दोष और शत्रुओं का नाश होता है । माता कात्यायनी का नाम प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन से जुड़ा हुआ है । एक समय महर्षि कात्यायन ने देवी भगवती को पुत्री रूप में प्राप्त करने की इच्छा से कठोर तपस्या की थी । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें वचन दिया कि – वे उनके घर पुत्री रूप में जन्म लेंगी । दूसरी ओर महिषासुर नामक दैत्य का आतंक स्वर्ग लोक से लेकर भूलोक तक फैल गया था । देवताओं को पराजित कर उसने इन्द्रलोक पर अधिकार कर लिया था । तब ब्रह्मा , विष्णु और महेश ने अपने – अपने तेज से एक शक्ति की सृष्टि की , जिसे सभी देवताओं ने अपना तेज प्रदान किया । यही शक्ति माता कात्यायनी के रूप में महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं । महर्षि ने उनका लालन, पालन, पोषण किया और यज्ञ के माध्यम से उनकी पूजा की । इस कारण से कात्यायनी कहा गया । माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त भव्य , तेजस्वी तथा आक्रोशित है । वे चार भुजाओं वाली देवी हैं । उनके एक हाथ में अभय मुद्रा और दूसरे हाथ में तलवार होती है । एक हाथ में कमल और एक हाथ में वरमुद्रा होती है । उनका वाहन सिंह है , जो उनके पराक्रमी और वीर रूप का प्रतीक है । यह स्वरूप उनकी उग्रता , साहस और अत्याचारियों के विनाश की शक्ति को दर्शाता है ।
                   
नवरात्र के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व होता है । इस दिन साधक अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने की कामना से माता की आराधना करते हैं । इनकी पूजा से दुर्गुणों का नाश , आत्मबल की प्राप्ति तथा आध्यात्मिक उन्नति होती है । विशेष रूप से अविवाहित कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति हेतु इनकी पूजा करती हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार व्रज की गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को स्वामी रूप में पाने के लिये कात्यायनी व्रत करती थीं । माता कात्यायनी की पूजा में साधक को पवित्र होकर आसन पर बैठना चाहिये । देवी को पीले या लाल वस्त्र , धूप-दीप , फल-फूल और नैवेद्य अर्पण करना चाहिये । विशेष शहद भोग माता को प्रिय है । मंत्र के जाप से साधक को अद्भुत शक्ति , साहस और आत्म विश्वास की प्राप्ति होती है ।
                   
माता कात्यायनी का ध्यान करने से मनुष्य के अन्तः करण की शुद्धि होती है । वे मणिपुर चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं , जो आत्मविश्वास व नियंत्रण का केन्द्र है । इस चक्र के जागृत होने पर साधक को दिव्य शक्तियों की अनुभूति होती है । जीवन के संघर्षों में विजय , मानसिक संतुलन , कर्मों में सफलता मिलती है । जो साधक आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर है उनके लिये माता कात्यायनी की कृपा अमोघ औषधि के समान है । उनकी साधना से साधक को ध्यान , योग और समाथि में विशेष लाभ मिलता है । माता का यह स्वरूप रजोगुण प्रधान है , जो कर्म और क्रिया शीलता को प्रेरित करता है । निष्कर्ष यह है कि – माता कात्यायनी शक्ति , शौर्य और नारीत्व की प्रतिमूर्ति हैं । उनका चरित्र हमें सिखाता है कि – जीवन में अधर्म और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना ही सच्ची भक्ति है । उनकी पूजा न केवल शारीरिक और मानसिक बल प्रदान करती है , अपितु जीवन में सद्गुणों की स्थापना भी करती है । जो भक्त श्रद्धा से उनकी उपासना करते हैं उन्हैं निश्चित रूप से माता की कृपा प्राप्त होती है ।

*डॉ. गौतमसिंह पटेल* 
सालर, सारंगढ़ छग

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