*माता चन्द्रघण्टा द्वारा महिषासुर का वध*

एक समय दानवराज महिसासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्गलोक पर आधिपत्य जमा लिया । तब देवताओं ने माता दुर्गा की आराधना की । माता ने चन्द्रघण्टा का स्वरूप धारण कर सिंह पर सवार होकर महिषासुर के साथ भयंकर युद्ध किया । उनकी दिव्य घण्टा की ध्वनि से महिषासुर की सेना मेंक्षभय और आतंक फैल गया । अन्ततः माता ने महिषासुर का वध कर देवताओं को पुनः स्वर्गलोक का स्वामी बना दिया । माता चन्द्रघण्टा न केवल बाह्य शत्रुओं का नाश करती है , अपितु काम , क्रौध , लोभ , मोह , मद , मत्सर आदि आन्तरिक शत्रुओं का भी विनास करती है । चन्द्रमा मन का स्वामी है । माता के माथे पर स्थित अर्धचन्द्र यह संकेत देता है कि उन्होंने अपने मन को पूर्ण रूप से साध लिया है । वे साधक को भी अपने मन को नियंत्रित कर आत्मज्ञान प्राप्त करने का संदेश देती हैं । घण्टा की ध्वनि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का प्रतीक है । यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है और साधक के हृदय में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है । सिंह साहस और निर्भिकता का प्रतीक है । इसका अर्थ यह है कि साधक.को अपनी साधना में निडर होकर आगे बढ़ना चाहिये ।
नवरात्र के तीसरे दिन माता चन्द्रघण्टा की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है । पूजा-विधि-विधान यह है कि प्रातःकाल स्नान-ध्यान कर स्वच्छ परिधान धारण करें । पूजास्थल को साफ-सुथरा कर कलश स्थापित करें । हथेली में जल , फल-फूल और अक्षत चावल लेकर माता की पूजा के लिये संकल्प लें । माता चन्द्रघण्टा के स्वरूप का ध्यान करते हुए धूप , दीप प्रज्वलित कर उनका आवाहन करें । उनका प्रमुख मंत्र है – ॐ देवी चन्द्र घण्टायै नमः इस मंत्र का 108 बार जाप करें । माता को दूध , घी और मिश्री से बनी मिष्ठान्न का भोग लगायें । तदुपरान्त आरती उतारकर माता से अपने भय , भूल , त्रुटि , दोष और पाप को दूर करने के लिये क्षमा-याचना करें माता चन्द्रघण्टा की भक्तग से साधक को अनेकानेक लाभ प्राप्त होते हैं । उनकी पूजा से जीवन में भय समाप्त होता है । शत्रुओं का नाश होता है और साधक निर्भीक बनता है । माता का अर्धचन्द्र साधक के मन को शांति प्रदान करता है । इसके अतिरिक्त मानसिक तनाव और असंतोष का नाश भी होता है । साधक को आत्मज्ञान और साधना में सफलता प्राप्त होती है । माता की कृपा से घर-द्वार और कुटुम्ब-परिवार में धन-धान्य , सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य-वृद्वि होती है । माता चन्द्रघण्टा की पूजा से लाभार्जन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अङ्गीकार किया जाता है । वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि घण्टा की ध्वनि से वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है । मंत्रजाप से तन और मन पर रचनात्मक, सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । मांनसिक तनाव को दूर कर साधक को उन्नत अवस्था में ले जाता है ।
सिंह पर आरूढ़ होकर चण्ड स्वरूप में शत्रुओं का नाश करने वाली माता चन्द्रघण्टा अपने भक्तों टर कृपा करें । माता चन्द्रघण्टा का स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि भय का नाश केवल साहस से ही सम्भव है । जीवन में संतुलन बनाये रखना आवश्यक है । बाहरी शत्रुओं के साथ-साथ हमें अपने आन्तरिक दोषों से भी युद्ध करधा चाहिये । शक्ति और सौम्यता का सामंजस्यता ही वास्तविक सफलता की कुञ्जी है । मां चन्द्रघण्टा नवरात्र के तीसरे दिन की आराध्य देवी हैं । उनका दिव्य स्वरूप सौम्यता और उग्रता का अद्भुत सामंजस्य है । वे अपने भक्तों के भय , भूल , त्रुटि , दोष , पाप , दुःख-दर्द और विघ्न-बाधाओं का नाश कर उन्हें भौतिक और आध्यात्मिक सुख , शांति , स्वास्थ्य , सुरक्षा , सामर्थ्य , सफलता , समृद्धि , सेवा , भक्ति भावाभिवृद्धि का आशीर्वाद देती हैं । माता की दिव्य घण्टा की घनघनाहट ब्रह्माण्ड में शुभता और कल्याण का संदेश प्रसारित करता है । उनकी पूजा से साधक न केवल सांसारिक सफलता प्राप्त करता है , अपितु आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकता है । इस प्रकार माता चन्द्रघण्टा की आराधना हमें यह सिखाती है कि शक्ति का प्रयोग सदैव धर्म , न्याय और सत्य की स्थापना के लिये करना चाहिये । उनके चरणों में समर्पित होकर हम अपने जीवन को भयमुक्त , सफल और कल्याणकारी बना सकतै हैं ।
*डॉ. गौतमसिंह पटेल* सालर सारंगढ़ छग


