पराली न जलाएं अपनी मिट्टी और सेहत बचाएं – कलेक्टर

सारंगढ़ । कलेक्टर डॉ संजय कन्नौजे ने बताया कि – जिले के 80 % से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। जिले में रवि एवं खरीफ फसलों की खेती की जाती है । जिसमें से धान का रकबा सबसे अधिक है । खरीफ में धान की कटाई के बाद काफी संख्या में कृषक पैरा को खेत में ही जलाकर रबी फसलों के लिए खेत की तैयारी कर बुआई करते है । कलेक्टर डॉ संजय कन्नौजे ने कहा कि – हर वर्ष धान की फसल कटाई के बाद खेतों में बची पराली को जलाना एक आम प्रथा बन गई है । यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है बल्कि मिट्टी की उर्वरता, मानव स्वास्थ्य और आने वाली फसलों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है । पराली जलाने से मिट्टी की गुणवत्ता घटती है । इससे मिट्टी के पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और सल्फर नष्ट हो जाते हैं। पराली जलने से धुआँ और धूल से साँस की बीमारियाँ, आँखों में जलन और हृदय रोग बढ़ाता हैं । हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है, जिससे शहरों और गाँवों में धुआं छा जाता है।
कलेक्टर डॉ संजय कन्नौजे ने कहा कि – पराली जलाना दंडनीय अपराध है। इस हेतु जुर्माना कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है । कृषकों के लिए यह बेहतर विकल्प है कि – किसान पराली को खेत में मिलाने के लिए रोटावेटर, हैप्पी सीडर या सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम जैसी मशीनों का उपयोग कर सकते हैं । पराली को कम्पोस्टिंग, बायोडीकंपोजर के माध्यम से इसे जैविक खाद में बदल सकते हैं। पराली का उपयोग पशु के लिए चारा , बिछावन के रूप में उपयोग कर सकते हैं। किसान पराली जलाने बचें एवं आधुनिक, पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाएँ । यह न केवल मिट्टी की सेहत सुधारेगा बल्कि परिवार और समाज के स्वास्थ्य की रक्षा भी करेगा।


