*”गौरैया संरक्षण प्वाइंट सारंगढ़ में “*

सारंगढ़ । आदत अनुसार ही मैं सायं काल उस स्थान के आसपास को जानने निकल पड़ा था।कुछ ऊंची हवेलियां जिनके नींव जिसने रखा होगा वह अपनी पुरखैनी पहचान बनाये रखने के लिए ठोस आधार रखवाया होगा,सोंचते हुए आगे बढ़ रहा था । उस क्षेत्र के अधिकांश मकान पुरखैनी आधार पर बने दिख रहे थे, जिससे यह तय था कि – यह कस्बाई बसाहट अपनी पुरातन कहानी लिए हुए पुरुषार्थी लोगों का धरोहर शहर है। अचानक बायें हाथ के भवन पर दृष्टि पड़ते ही मैं ठिठक पड़ा था, मुख्य दरवाजे की बाईदिवाल पर एक सुस्पष्ट तख्ती लगी थी जिस पर लिखा था गौरैया संरक्षण प्वाइंट।
मैं रुक कर उस तख्ती को ध्यान से देखा, तख्ती साफ- सुथरी व सुस्पष्ट थी, अतः उस व्यक्ति के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रबल हो गई जो इस तख्ती पर उत्कीर्णित शब्दों के प्रणेता हैं। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दिया,दो तीन बार दिया। दरवाजे पर लगे लोहे के ग्रिल से अंदर की सुव्यवस्थित भव्यतादिख रही थी। दरवाजे पर दो तीन थपकियां और देने पर बारिक आवाज आई- कौन है.? आदरणीय मैं दरवाजे पर खड़ा हूॅं व आपसे मिलना चाहता हूॅं । एक सज्जन तब तक बगल वाले कमरे से छाया बनाते हुए बाहर आ चुके थे,मैंने उन्हें अपना नाम बताते हुए उनसे गौरैया के बारे में जानने की इच्छा बताया तो उनके चेहरे पर विश्वास भरा मुस्कुराहट उभर गया था । शटर दरवाजा खुला और बैठने के आग्रह के साथ हम लोग पूर्व परिचित की तरह बातें करना शुरू कर दिए थे । आपके दरवाजे पर काल बेल नहीं दिखने के कारण मुझे आपके दरवाजे पर धौल लगाना पड़ा । काल बेल मैंने बाहरी अवांछित हस्तक्षेप से बचने के लिए थोड़ा ओट लेते हुए लगाया है। कहते हुए उन्होंने मुझे किनारे लगे काल बेल को दिखाया।
गौरैया प्रेमी के रुप में उनकी अभिरुचि के बारे में प्रश्न करने पर उन्होंने बताया कि – बचपन से पक्षियों से लगाव था,बाबुजी पक्षियों व गाय के लिए दाना,चारा देने को पुण्य का कार्य मानते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे। हमारे घर गाय,कौए और गौरैया आया करती थीं; धीरे-धीरे उन्हें दाना-चारा देने की मेरी दिनचर्या बन गई।एक निश्चित समय पर कौए दरवाजे के सामने वाले मकान के छत पर बैठ कर आवाज करते और मेरे द्वारा अपने दरवाजे के सामने बेसन के बने खाद्य सामग्री डालते ही कौए पास आ जाते और खाद्य पदार्थ, रोटी के टुकड़ों को से झिझक उठा ले जाते । इसी तरह गौरैया भी दो चार फिर झुंड में दाना चुगने आने लगीं। घर के सामने बाबुजी ने एक बोगनविलिया का पौधा लगाया था जो आज सत्तर साल का हो चुका है और आज छत के ऊपर तक जा चढ़ा है को गौरैयों ने अपना रात्रिकालीन आसियाना बना लिया । अब सुबह ५.३० बजे उनके कलरव आने लगता जो प्राकृतिक संगीत का मनोहारी वातावरण बना देता है । मेरे द्वारा दाना के बर्तन में दाने व पानी के सकोरे में जल डाल दिया जाता है, जिनका उपयोग कर गौरैया छ:बजे तक अपने दैनिक उड़ान पर निकल जाती हैं । सायंकाल सूर्यास्त पर पुनः बौगनविलिया के अपने रात्रि कालीन अधिवास पर एकत्रित हो जाती हैं।
उनकी बातों को मैंने बिना मध्य बाधा के सुना था।
अभी क्या गौरैया आपके बौगनविलिया पर होंगी ?
पूछने पर उन्होंने विश्वास के साथ हाॅं बोलते हुए मुझे मुख्य दरवाजे से ऊपर देखने को कहा। मैंने ऊपर देखा तो आश्चर्य चकित रह गया।बौगनविलिया के लता पर गौरैया शांत भाव से निशा कालीन विश्राम करती बैठी हुई थीं जो खिले फूलों की तरह दिख रही थीं। उन्होंने इशारे से दरवाजे की दूसरी ओर लगाये गये चमेली की बेल की शाखाओं पर बैठे गौरैय्या को दिखाया जो रातरानी की फूलों की तरह उस लता पर आच्छादित थीं।
उन्होंने बताया कि – बौगन विलिया में कांटे होते हैं जिस के कारण बिल्लियां इस पर नहीं चढ़ पातीं और गौरैया सुरक्षित रुप से बिना बाधा के अपना रात्रिकालीन विश्राम कर पाती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें प्राकृतिक वृक्षों की शाखाओं, जड़ों में बिंब चित्र की कल्पना कर उन्हें मूर्त रूप देने में रुचि है।
ऐसे काष्ठ कला कृतियों में रंग कला के साथ सजीवता दिये गये महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह , मानव-पक्षियों की आकृतियां देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्हें मिट्टी की मूर्तियां बनाने की रुचि है और गणेश जी, दुर्गा जी की मूर्तियां प्रति वर्ष बनाते हैं। अभी गणेश जी की मूर्ति बना रहे हैं जिसे गणेश पूजन में स्थापित कर सपरिवार पूजन करेंगे ।
उनके दोनों पुत्रों ने अपने पारिवारिक व्यवसाय को आशा अनुरूप आगे बढ़ाया है और उनके कार्य कौशल व परिश्रम तथा प्रगति से वह पूर्णतः संतुष्ट व निश्चिंत हैं।
उन्हें राष्ट्रवादी विचारधारा पसंद है। आध्यात्मिक व आस्तिक जीवन पद्धति को श्रेष्ठ मानते हैं । अच्छे साहित्य पढ़ने में उन्हें रुचि है । उस पक्षी प्रेमी, प्रकृति प्रेमी, काष्ठ कला विशेषज्ञ, मिट्टी मूर्तिकार व पिता के धरोहरों को संरक्षित कर अपने परिवार के लिए शक्ति व प्रेरणा का श्रोत बनाये रखने का संस्कार पल्लवन करने वाले सफल पालक को और वह हैं श्री गुलाब अग्रवाल, सारंगढ़ के प्रसिद्ध व्यवसायी व पूर्व नपा उपाध्यक्ष मानव समाज के लिए आदर्श व अनुकरणीय महापुरुष की श्रेणी में आते हैं जो युवा वर्ग के लिए मार्ग दर्शक हैं । यह मेरे लिए ईश्वरीय सुयोग था जो मैं उनका सान्निध्य प्राप्त कर सका।